ش | ی | د | س | چ | پ | ج |
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | |
7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 |
14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 |
21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 |
28 | 29 | 30 |
ماندم به چمن شب شد و مهتاب برآمد
سیمای شب آغشته به سیماب برآمد
آویخت چراغ فلک از طارم نیلی
قندیل مه آویزه محراب برآمد
دریای فلک دیدم و بس گوهر انجم
یاد از توام ای گوهر نایاب برآمد
چون غنچه دل تنگ من آغشته به خون شد
تا یادم از آن نوگل سیراب برآمد